Monday 31 July 2017

खुशियों में खिलता गुलाब है ज़िन्दगी

माना उलझन की किताब है ज़िंदगी
लेकिन फिर भी लाजवाब है ज़िंदगी
,
आंसू  बहते कहीं मनाते जश्न यहां
देती सुख दुख   बेहिसाब   है ज़िंदगी
,
बदल रही रूप हर पल ज़िन्दगी यहां
रोज  नए  दिखाती ख्वाब है ज़िंदगी
,
ढलती शाम डूबता   सूरज हर रोज़
भोर का नया  आफताब  है ज़िंदगी
,
मिले गम खुशियां भी मिली हज़ार यहां
खुशियों में खिलता  गुलाब है  ज़िंदगी

रेखा जोशी

Sunday 30 July 2017

अधूरी चाहतें अधूरे खवाब अधूरी ज़िंदगी


अधूरी चाहतें  अधूरे ख़्वाब अधूरी ज़िंदगी|
इंतज़ार है न जाने कब होगी पूरी ज़िंदगी||
.
डोल रही देख मंझधार में यह कश्ती हमारी|
गिरा दिये तुमने हाथों से पतवार भी ज़िंदगी||
.
थक गये नैन मेरे यहाँ राह तकते तुम्हारा|
.बेचैन आँखों को है इंतज़ार अब भी ज़िंदगी||
.
राह ज़िंदगी की मुश्किल होंगी इस कदर हमारी|
सोचा न था यह हमने ख़्वाब में भी कभी ज़िंदगी||

उखड़ रही यहाँ साँसे भी लम्हा लम्हा हमारी|
खत्म सब कुछ हो जायेगा जब न रहेगी ज़िंदगी||

रेखा जोशी

करते रहे इंतजार तेरा

झूठा निकला करार तेरा
मिला  ना हमको प्यार तेरा
,
थामा हाथ उम्र भर के लिये
न पाया फिर  दीदार  तेरा
,
खिले गुल गुलशन में बहारे
उतरा नहीं है  खुमार तेरा
,
रात दिन हम तुमको पुकारे
नाम लिया बार बार तेरा
,
चले आओ सजन घर अपने
करते  रहे इंतजार तेरा

रेखा जोशी

Friday 28 July 2017

चांद निकला आंगन हमारे

शाम कठिन है रात कड़ी है
आंसूओं  की लगी  झड़ी है
,
राह  निहारे प्रियतम तेरी
पथ पर आज गोरी खड़ी है
,
चांद निकला आंगन हमारे
पिया मिलन की आज घड़ी है
,
खोये रहते सपनों में हम
जबसे साजन आंख लड़ी है
,
दिलों से दिल जोड़ कर देखो
लफ्जों की  बात बहुत बड़ी है

रेखा जोशी

Monday 24 July 2017

खुशियाँ लेकर तब घर आँगनफिर आई नन्ही परी

याद है जब मिले थे हम तुम वो प्यारी सी मुलाकात
प्रीत तेरी  ने  दिल मे जगाये  थे   प्यार भरे जज़्बात
खुशियाँ लेकर तब घर आंगन फिर आई इक नन्ही परी
सारा जग अब जान गया है ,तेरी -मेरी-उसकी बात

रेखा जोशी

Thursday 20 July 2017

तन्हा हम रह गए सिसकते है अब हमारे जज़्बात

जुल्फों के साये में कभी गुज़रे  थे हमारे दिन रात
तन्हा हम  रह गये सिसकते है अब हमारे जज़्बात
,
खता ऐसी क्या हुई हमसे जो तुमने किया किनारा
न जाने रूठे फिर क्यों आज साजन हमारे बिन बात
,
है  फूल खिले चमन में छाई बहारें अब बेशुमार
न जाने कब होगी फिर हमारी तुम्हारी मुलाकात
,
रह गये ख्यालों में हमारे खूबसूरत याद बनकर
जाने कहाँ  गई अचानक ज़िन्दगी देकर हमें  मात
,
जुदा हो गये तेरे गेसुओं की कैद से साजन हम
होती पिया अब सदा नैनों से आंसुओं की बरसात

रेखा जोशी

Friday 14 July 2017

सावन

सावन बरसा झूम के भीगा तन मन आज
पेड़ों   पर झूले पड़े  बजे   है मधुर  साज़
आई   बरसात  भीगे    से  अरमान लेकर
है भाया  आज भीगे  मौसम  का अंदाज़

रेखा जोशी

जाग जाओ देश मिलकर है बचाना

जाग जाओ देश मिलकर है बचाना
नींद में सोये हुओं को  है जगाना

साँस दुश्मन को मिटा कर आज लेंगे
साथ मिलकर है बुराई  को मिटाना

मिट गये है देश पर लाखो सिपाही
फौज की हिम्मत सभी को है बढ़ाना

देश के दुश्मन छिपें घर आज  अपने
पाठ उनको ढूँढ कर अब है पढ़ाना

दूर सीमा पर रहे सेना हमारी
पाक को अबतो सबक मिलकर सिखाना

रेखा जोशी

Thursday 13 July 2017

है जननी जन्म भूमि हमारी

है जननी
जन्म भूमि हमारी
प्राणों  से भी
यह हमें प्यारी
अरे भारत उठ आँखे खोल
धरा रही है डोल
दुर्दशा देख किसानों की
इधर
मर रहे यहाँ वह
उधर
चले सीमा पर गोली
हाथ बंधे सिपाही के
और
पत्थरबाजी कश्मीर में
हद पार कर दी
आतंक के दरिंदों ने
मौत की नींद
सुला दिया
भोलेनाथ के भक्तों को
फड़क रही भुजाएं आज
खून खौलता रगों मेंअब
खुल गई पाक के
नापाक इरादों की अब पोल
अरे भारत! उठ ,आँखे खोल
देश अपना रहा बुला
अरे  भारत!उठ,आँखे खोल

रेखा जोशी

Monday 10 July 2017

यहॉं पर प्यार भी अपना नहीं था


1222  1222  122

यहॉं पर प्यार भी अपना नहीं था
पिया कोई  यहाँ  सपना नहीं था

कहानी बन गई यह ज़िन्दगी अब
मनाना यार को आता नहीं था
,
हमें तो ज़िन्दगी से गम मिले पर
मिला जो दर्द वह जाता नहीं था
,
भुला कर  याद तेरे प्यार की अब
हमे साजन यहाँ जीना नहीं था
,
यहाँ पर घुट रहा अब दम हमारा
सिला यह प्यार का जाना नहीं था

रेखा जोशी

Sunday 9 July 2017

गुरुवर महान

बहने लगी
ज्ञान की गंगा
आते ही
आषाढ़ मास की पूर्णिमा
शत शत करते
नमन
बांचते ज्ञान
गुरुवर महान
थे रचे वेद चारो
लबालब ज्ञान से
परम् ज्ञानी मुनि
व्यास ने
गुरु पूर्णिमा से
वन्दन कर प्रभु का
शत शत करते
नमन
प्रभु का
दिया जो हमे वरदान
गुरुवर भेजा धरा पर
राह दिखाता जीवन में
शत शत नमन
करते
गुरुवर का
मार्गदर्शक बन
जीना सिखाता
बारम्बार
नमन करते
गुरुवर महान
गुरुवर महान

रेखा जोशी

Thursday 6 July 2017

गीतिका


मापनी  - 122   122. 122. 122

पिया आज तुमको मनाने चला हूँ
सदा साथ तेरा    निभाने  चला हूँ
,
सहारा  मिला आज तो  ज़िंदगी में
गिले औऱ शिकवे मिटाने  चला हूँ

नहीं अब बहारें   नज़ारे  नहीं अब
यहाँ फूल उपवन  खिलाने चला हूँ
,
भुला कर सभी गम यहाँ ज़िन्दगी में
सजन ज़िन्दगी अब बनाने चला हूँ
,
मिला साथ तेरा मिली आज मंज़िल
यहाँ आज   जीवन बिताने चला हूँ

रेखा जोशी

जीवन के पिया आया मौसम बहार का

जीवन में पिया   आया मौसम बहार  का
पूछे  वो  काश   हाल  दिले   बेकरार  का
बेशुमार सा नशा छाया रहे  अब  तो सदा
कर भी लो सजना आज इकरार प्यार का

रेखा जोशी

Wednesday 5 July 2017

मेरी सतरंगी कल्पनायें

मेरी सतरंगी कल्पनायें

उड़ती गगन में
मेरी सतरंगी कल्पनायें
झूलती इंद्रधनुष पे
बहती शीतल पवन सी
ठिठकती कभी पेड़ों के झुरमुट पे
थिरकती कभी अंगना में मेरे
सूरज की रश्मियों से
महकाती  गुलाब गुलशन में मेरे
तितलियों सी झूमती
फूलों की डाल पे
दूर उड़ जाती फिर
लहराती सागर पे
चूमती श्रृंखलाएँ पर्वतों की
बादल सी गरजती कभी
चमकती दामिनी सी
बरसती बरखा सी कभी
बिखर जाती कभी धरा पे
शीतल चाँदनी सी
नित नये सपने संजोती
रस बरसाती जीवन में मेरे
मेरी सतरंगी कल्पनायें

रेखा जोशी

न हो हमसे खफा अब ज़िन्दगी में

तुझे चाहें सदा अब ज़िंदगी में 
न हो हमसे  खफा अब ज़िंदगी में

रहे तन्हा बिना तेरे सहारे
सताये गी वफ़ा अब ज़िंदगी में

बहुत रोये सनम तेरे लिये हम
नही कुछ भी कहा अब ज़िंदगी में

तड़प तुम यह हमारी देख ले अब
मिले जो इस दफा अब  ज़िंदगी में

न कर शिकवा बहारों से सनम तू 
नही वह  बेवफा अब ज़िंदगी में

रेखा जोशी

घन घन गरजता आया सावन
रिम झिम बरसता आया सावन
पहन   बरसाती ले   लो  छाता
मन को भी  बहुत भाया सावन

रेखा जोशी

Tuesday 4 July 2017

आसमाँ से पकड़ सितारे यहाँ लायेंगे

आसमाँ  से   पकड़    सितारे  यहाँ   लायेंगे
सितारों  संग   आज  हम महफ़िल सजायेंगे
मिल   बैठेंगे   फिर  दोनों   उनके   संग संग
कुछ  उनकी  सुनेंगे   कुछ  अपनी  सुनायेंगे

रेखा जोशी

Monday 3 July 2017

संस्मरण

संस्मरण

बात उन दिनों की है जब दिवाली से पूर्व हमारे  घर में सफेदी और रंगाई पुताई का काम चल रहा था ,मेरो आयु करीब दस वर्ष की होगी,,मेरे मम्मी पापा कुछ जरूरी काम से घर से बाहर गए हुए  थे ,पूरे घर का  सामान बाहर आँगन  में बिखरा हुआ था ,घर  के सभी कमरे लगभग खाली से थे और मेरे छोटे भाई बहन मस्ती में एक कमरे से दूसरे कमरे  में  छुपन छुपाई खेलते हुए इधर उधर शोर शराबा करते हुए भाग रहे थे,लेकिन मै सबसे बड़ी होने के नाते अपने आप को उनसे अलग कर लेती थी ,उन दिनों मुझे फ़िल्मी गीत सुनने का बहुत शौंक हुआ करता था ,बस जब भी समय मिलता मै  रेडियो से चिपक कर गाने सुनने और गुनगुनाने लग जाती थी ,उस दिन भी मै रेडियो पर कान लगाये गुनगुना रही थी।

उस कमरे में सामान के नाम पर बस एक ड्रेसिंग टेबल और एक मेज़ पर रेडियो था  जहां खड़े हो कर मै अपने भाई बहनों की भागम भाग से बेखबर मे संगीत की दुनिया में खोई हुई थी ,तभी बहुत जोर से धड़ाम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया ,आँखे उठा कर देखा तो ड्रेसिंग टेबल फर्श पर गिर हुआ था और उस  खूबसूरत आईने के अनगिनत छोटे छोटे टुकड़े पूरे फर्श पर बिखर हुए थे,वहां उसके पास खड़ी मेरी छोटी बहन रेनू जोर जोर से रो रही थी ,ऐसा दृश्य देख मेरा दिल भी जोर जोर से धडकने लगा था ,मै भी बुरी तरह से घबरा गई  थी ,एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कहीं रेनू को कोई चोट तो नही आई ,लेकिन नही वह भी बुरी तरह घबरा गई थी ,क्योकि वह खेलते खेलते ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुप गई थी और जैसे ही वह बाहर आई उसके  कारण  ड्रेसिंग टेबल का संतुलन बिगड़ गया और आईना फर्श पर गिर कर चकना चूर हो गया था ।

हम दोनों बहने डर  के मारे वहां से भाग कर अपने नाना के घर जा कर दुबक कर बैठ गई ,जो कि हमारे घर के पास ही था ,कुछ ही समय बाद ही वहां पर हमारी मम्मी के फोन आने शुरू हो गए और फौरन हमे घर वापिस आने के लिए कहा गया ,मैने रेनू को वापिस  घर चलने  के लिए कहा परन्तु वह डरी  हुई वहीं दुबकी बैठी रही ,बड़ी होने के नाते मुझे लगा कि हम कब तक छुप कर बैठे रहें गे ,हौंसला कर मै  घर की और चल दी और मेरे पीछे पीछे रेनू भी घर आ गई । जैसे ही मैने घर के अंदर कदम रखा एक ज़ोरदार चांटा मेरे गाल पर पड़ा ,सामने मेरी मम्मी खड़ी थी । मै हैरानी से उनका  मुहं देखती रह गई  ,''यह क्या गलती रेनू ने की और पिटाई मेरी '' बहुत गुस्सा आया मुझे अपनी माँ पर  जबकि गलती मेरी छोटी बहन से हुई थी ,बहुत रोई थी उस दिन मै ।

आज जब भी मै पीछे मुड़ कर उस घटना को याद करती हूँ तो फर्श पर बिखरे वो आईने के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तैरने लगते है और अब मै समझ सकती हूँ कि अपने मम्मी पापा  की अनुपस्थिति में बड़ी होने के नाते मुझे अपने घर का ध्यान रखना चाहिए था ,मुझे अपनी बहन रेनू को ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुपने से रोकना चाहिए था । वह चांटा मुझे मेरी लापरवाही के कारण पड़ा था। उस चांटे ने मुझे जीवन में अपनी जिम्मेदारी का अर्थ  समझाया था।

रेखा जोशी

Sunday 2 July 2017

ग़ज़ल

प्रदत बहर- ख़फ़ीफ मख़बून महज़ूफ मक़तूअ

अर्कान- फाइलातुन मफाइलुन फेलुन
वज़्न-  २१२२/१२१२/२२

काफ़िया अर
रदीफ़- पर है

चल रहे  प्यार की डगर पर है
अब मिला प्यार ही  सफर पर है

है   हमें   इंतज़ार तेरा  अब
राह तेरी पिया  नज़र  पर है

हम कभी प्यार को नहीं भूले
चाहतें भी अभी मगर पर है

छोड़ना ना कभी हमें साजन
आज तो प्यार आप घर पर हैं

आप आ कर चले गये थे पर
प्यार अपना पिया अमर पर है

रेखा जोशी

माना था तुम्हे अपना गैरों को दिया सहारा

माना था तुम्हे अपना गैरों को दिया सहारा
अब किसे पुकारे न मिला हमे तेरा इक सहारा

चाहत  तेरी लिए भटकते रहे हम दर ब  दर
अच्छा किया जो तुमने कर लिया यूँ  किनारा

तन्हाई में तेरी तस्वीर से करते रहे बाते
चुरा लिया चैन दिल का क्यों चुपके से अब हमारा

यादों में आ कर अक्सर मुस्कुराते हो हमारी
छेड़  देते हो  दिल में  हमारे फिर  वही  तराना

रख लिया छुपा कर तुम्हे पलकों में अपनी हमने
देख लेंगे  जीवन  भर हम अब तो यही नज़ारा

रेखा जोशी