Thursday 8 January 2015

चलें दूर गगन के द्वारे

चल री सखी
पर्वतों के उस पार
बादलों के रथ पर
हो के सवार
,
चलें दूर  गगन के द्वारे
अनछुआ अनुपम सौंदर्य
बिखरा है जहाँ
विविधता लिये
मन को भाते रंगीन नज़ारे
बज रहे जहाँ सुर ताल के
बादलों की छटा से
छिटकती रोशनी  गुनगुना रही
मधुर तराने
.
चल री सखी
चले वहाँ
रचयिता ने रची
रचना आलौकिक
प्राकृतिक सौंदर्य का
आज रसपान लें
आँखों में बसा ले
कल्पना से लगते
वही खूबसूरत नजारें
.
चल री सखी
पर्वतों के उस पार
बादलों के रथ पर
हो के सवार

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment