Sunday 7 December 2014

कुछ सपने बंद पलकों से

देखे
कुछ सपने
बंद पलकों से कभी
बह गए
अचानक
आँखों से हमारी
ठुकरा दिया
तुमने
चाहत को
हमारी
धड़कता था जिया
तेरे लिये
टुकड़े हुए उसके
दिल  क्या टूटा
बिखर गई उम्मीदे
इधर उधर
हमारी
और हम नादान
संजोते रहे
पलके बंद कर के
अभी भी
वही सपने

रेखा जोशी

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