Saturday 16 August 2014

धड़कता दिल कांपते हाथ

काली अँधेरी रात
छूटा साये  का भी साथ
धड़कता दिल कांपते हाथ

लगता क्यों
 न जाने
कोई है मेरे साथ
चल रहा संग मेरे
जगाता दिल में मेरे
इक आस
रख कर हिम्मत
बढ़ता चल न डर
झाँक दिल में अपने
थरथराती लौ दिये की
दिखा रही राह
स्याह अँधेरे में
लेकिन
फिर भी रहा मेरा
धड़कता दिल कांपते हाथ

भीतर ही भीतर
हो रही उजागर
राह मंज़िल की
थामे अपनी साँसे
नहीं दी बुझने
वह थरथराती लौ
रखती रही पग अपने
संभल संभल कर
लेकिन
फिर भी रहा मेरा
धड़कता दिल कांपते हाथ

रेखा जोशी 

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