Thursday 8 May 2014

दिखा दो माँ करुणा और शक्ति प्रेम की

समझ सकती
मै पीड़ा तुम्हारी
खून के प्यासे
दो भाईयों को देख कर
तिलमिला उठी दर्द से
यह कोख मेरी
माँ हूँ न
रचना जो की उनकी
रचयिता जो तुम हो
संपूर्ण जग के
महसूस कर रही मै
तड़प तुम्हारे मन की
क्या गुज़रती होगी
सीने में तुम्हारे
नाम तेरा ले कर
जब लड़ते बच्चे तेरे
धर्म के नाम
देख लाल होती धरा
धमाकों की गूँज से
कालिमा पुत गई
नील गगन पर
मर रही संतान तेरी
अपने बंधुजनों से
दिखा के शक्ति प्रेम की
हे जगदम्बा
मिटा दे वो घृणा
कालिमा  लिए हुए
सांस सुख की ले सकें
फिर नीले अम्बर तले
पोंछ दो वो आँसू
खून बन जो टपक रहे
दिखा दो माँ
करुणा और शक्ति प्रेम की

रेखा जोशी



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