Sunday 9 February 2014

तलाश रही है तुम्हे मेरी भीगी ऑंखें



वीरान 
है यह दिल 
बिन तुम्हारे 
मालूम है 
नही 
आओ गे तुम 
फिर भी 
न जाने  क्यों 
इंतज़ार 
है तुम्हारा 
महक रहे 
यह हसीन लम्हे 
और 
गुनगुनाती हुई 
यह सुहानी शाम 
बुला रही 
है तुम्हे 
अब तो 
उतर आया है 
चाँद भी 
अंगना में 
गुम है 
यह दिल 
जुस्तजू 
में तेरी 
और 
तलाश रही है 
तुम्हे मेरी 
भीगी ऑंखें 

रेखा जोशी 

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