Wednesday 25 December 2013

गूँथ रहा गीतों की माला

यह गीतों की माला गुंथन को
मै सुन्दर से सुन्दर फूल चुनूं
इक इक की मै परखूँ खुश्बू को
औ हर इक फूल सजा कर देखूं
यह गीतों  की  माला  गूँथ रहा
मै    रंग  बिरंगे  फूल   सजाऊं
पर है न मिला वह मै खोज रहा
जिस को अब यह माला पहनाऊँ
उत्तर  जाऊं  दिखे   दक्षिण  में
और मै फिर  दक्षिण  को जाऊं
मै  पूरब घूमूं फिर पश्चिम में
वह  आगे  औ  मै पीछे   जाऊं
इक दिन वह थक कर  हारेगा
माला  यह  मेरी  स्वीकारे गा

महेन्द्र  जोशी


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