Friday 12 April 2024

ज़िन्दगी की तूलिका

छंद मुक्त रचना 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

हार जीत के रंग 
ख़ुशी गम लिए रंग 
सुख दुख से भरे रंग 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

खो जाते विभिन्न रंगों में हम 
अक्सर बह जाते 
भावना के रंगों संग हम 
देती है पीड़ा दर्द भी हमें 
ख़ुशी के संग संग 
रुलाती भी बहुत है 
हंसी के संग संग हमें 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

रेखा जोशी 


Sunday 7 April 2024

आईना झूठ नहीं बोलता

विधा --छंदमुक्त 

आईना जो कहे 
वह सदा सच नहीं होता 
है दिखलाता वही तुम्हें 
जो देखना चाहते हो तुम 
छुपा कर सच 
है झूठ बोलता वोह 
धुंधला गया है वोह शायद 
गर देखना चाहते हो सच को
है देखना तुम्हें 
साफ साफ अक्स अपना 
तो पोंछ लो अच्छे से उसे 
और अपने मन को भी
तब आईना सच बतायेगा 
क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता 

रेखा जोशी 



Wednesday 3 April 2024

भयानक काली रात

वोह खौफ़नाक मंजर आते ही याद
केदारनाथ धाम की वोह शाम 
थी भयानक  काली रात 
जब तबाही ही तबाही थी हर ओर 
कांप उठती है रूह अभी भी  
जब था दिखलाया महादेव नें 
रौद्र रूप अपना 
थे बिखर गए सब ताश के पत्तों से 
भवन, पुल गाड़िया सब कुछ 
उस महा जलप्रलय में 
भयंकर गर्जना करती मन्दाकिनी
अपने प्रबल वेग से बहा ले गई संगअपने 
सोते लोगों को पानी में 
बह गए प्रवेग धारा में क्या बच्चे क्या बूढ़े 
सब के सब लीन हुए जल समाधि में 
मन्दाकिनी के  भारी शोर में खामोश हुआ 
चीखों का शोर 
पत्नी का हाथ पति से छूटा
बिछड़ गए अपने अपनों से 
परिवार के परिवार लुप्त हो गए 
क्षण भर में विलिप्त हो गए
वक़्त वो तो गुजर गया 
लेकिन कैसे भर पाएंगे 
वो गहरे ज़ख्म, जो छोड़ गए 
दुख भरी दास्तां पीछे अपने 

रेखा जोशी 


Sunday 31 March 2024

भारत माँ को बचाना है

जागो भारत के 
वीर सपूतो
डूब रहा यह देश हमारा
भारत माँ को बचाना है 

इसे लूट रहे भाई बंधु तेरे 
खनकते पैसों से 
हैं पगलाये
भर रहे सब अपना घर
तार तार हुआ माँ का आंचल
भारत माँ को बचाना है 

धधकती लालच की ज्वाला
पर पनप रहा 
है भ्रष्टाचार
नोच खा रहे कपूत माँ के 
जकड़ अनेक घोटालों में
खत्म कर घोटालों को 
भारत माँ को बचाना है 

याद करो अमर शहीदों को
मर मिटे भारत की खातिर
भर कर पानी आँखों में  
माँ को गद्दारों से  मुक्त कराना है
भारत माँ को बचाना है 

जागो भारत के 
वीर सपूतो
है डूब रहा यह देश हमारा
भारत माँ को बचाना है 

रेखा जोशी

गीत

गीत
आधार छन्द- रास छंद  
8,8,6 पर यति  इसमें चार चरण होते हैं 
हर चरण में 22 मात्राएं होती हैं 
चरण के अंत में 112 अनिवार्य है
दो क्रमागत पंक्तियों में तुकांत होते हैं

अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं,  महक रही 
..
पिया न आए, हिय घबराये ,दिल धड़के 
जियरा चाहे, देखूँ  उनको, जी भर के 
मदमस्त समां, ली अँगड़ाई , बहक रही 
आओ सजना,कोयल भी अब, कुहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
काली काली ,घटा घनघोर, घन बरसे
अब तो आजा, साँवरे पिया,मन तरसे 
भीगा मौसम ,सर से चुनरी, सरक रही 
चमके बिजुरी,आसमान पर,दमक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
..
अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 

रेखा जोशी 



Saturday 30 March 2024

गीतिका

गीतिका 

आधार छंद- सार 
विधान- कुल २८ मात्रा, १६,१२ पर यति। अन्त में गुरु गुरु अनिवार्य।
समांत आना पदाँत होगा 

बहुत किया इंतजार तेरा, तुमको आना होगा 
सोया भाग्य मेरा भगवन, तुम्हें जगाना होगा 
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हूँ अकेली इस जगत में प्रभु, कोई नहीं सहारा 
बीच भंवर डूब रही नाव, तुम्हें बचाना होगा 
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ना कोई है संगी साथी, जीवन से मैं हारी 
निर्जन राह पर चलती रही, साथ निभाना होगा 
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सूना पथ पाँव पड़े छाले, भगवन किसे पुकारूँ 
कोई नहीं तुम बिन मेरा,गले लगाना होगा 
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हे दीन दयाला प्रभु मेरे, रक्षा करो तुम मेरी
तुम ही तुम रखवाले मेरे, पास बुलाना होगा 

रेखा जोशी 

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Thursday 21 March 2024

नव भोर

शीर्षक  नव भोर

"आज भी कोई मछली जाल में नही आई "राजू ने उदास मन से अपने साथी दीपू से कहा l दोनों मछुआरे अपनी छोटी सी नाव में सवार सुमुद्र में मछलियाँ पकड़ने सुबह से  ही घर से निकले हुए थे l उनके  पास थोड़ा सा खाना और पीने का पानी था, जो शाम होते होते खत्म हो चुका था, तभी राजू को सुमुद्र में फैंके जाल में हलचल महसूस हुई और जाल भारी भी लगा, उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर आ गई l वह जोर से चिल्लाया,"दीपू हमारी मेहनत सफल हो गई, लगता है जाल में काफी मछलियाँ फंस गई हैँ, आओ दोनों मिलकर जाल ऊपर खींचते हैँ l मछलियों को देख दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, लेकिन जैसे उनकी ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई, आसमान में घने बादल छा गए, तेज होती हवाओं से उनकी नाव लड़खड़ाने लगी और उनकी ज़िन्दगी में तूफान दस्तक दे चुका था, शाम ढलने को थी,लहरों पर तेज़ी से झूलती नाव हिचकोले खाने लगी और कश्ती  में सुमुद्र  का का पानी भरने लगा, राजू और दीपू के चेहरे की रंगत बदल गई, आज उनकी परीक्षा की घड़ी थी l दोनों बाल्टी से नाव में भरते पानी को निकाल सुमुद्र में फेंक रहे थे और जी जान से नाव को संभालने की कोशिश करने लगे, लेकिन प्रकृति के आगे उनके हौसले कमजोर पड़ गए l वह दिशा भटक गए थे, अँधेरी रात, बारिश, दिशाहीन लड़खड़ाती नाव और तेज तूफान में वह दोनों फंस चुके थे l उसी आंधी तूफान में दीपू को दूर एक चमकीली रोशनी दिखाई दी, सुमुद्र की ऊँची ऊँची लहरों के थपेड़ों से उनकी कश्ती चरमराने लगी थी, फिर भी दीपू ने दम लगा कर नाव का रुख उस "लाइट हाउस" की ओर मोड़ दिया, दोनों बुरी तरह से थक चुके थे, हार कर उनके हाथ से पतवार छूट गई  उस भयंकर तूफान से लड़ते लड़ते वह दोनों बेहोश हो गए, कब रात बीती कब सुबह हुई, वह दोनों बेखबर नाव में ही गिर हुए थे l तेज सूरज की रोशनी से जब राजू की आँख खुली तो उनकी नाव सुमुद्र के किनारे पर थी और तूफान थम चुका था, कुछ लोग उनकी नाव के पास खडे थे, उन लोगों ने उन्हें उस टूटी नाव से बाहर निकाला दीपू और राजू सहित वहाँ खडे सभी लोग हैरान थे की वह इतने भयंकर तूफान से कैसे बच गए दोनों ने उगते सूरज को प्रणाम किया, यह सुबह उनके जीवन की इक नव भोर थी उन्हें नया जीवन जो मिला था l

रेखा जोशी